मई की इस चिलचिलाती गर्मी में क्या कोई महामानव धूप में बिना गर्म कपड़े पहनकर खड़ा हो सकता है? हमारी कुछ माताएँ, बहनें इस हैरतअंगेज़ कारनामे को कर सकती हैं. ये वही वीरांगनाएँ हैं जो दिसंबर की कड़कड़ाती ठंड में विवाह उद्यानों में बिना गर्म कपड़ों के कार्यक्रमों का आनंद ले रही होती हैं.
वैसे इस तर्क में दम तो है. यदि कड़कड़ाती ठंड में कोई बिना गर्म कपड़े के हो सकता है, तो फिर चिलचिलाती गर्मी में गर्म कपड़े क्यों नहीं पहन सकता? यदि यह कभी होने लगे तो, आश्चर्य न करिएगा. बस, दरकार है कुछ अभिनेत्रियों के इस गर्मीला फैशन को शुरू करने की. फिर देखिए कैसे लोग इसकी नक़ल करते हैं. वैसे भी, हमारी पूरी ज़िंदगी लोगों की नक़ल में ही तो जाती है; अपनी अक़्ल का इस्तेमाल करते ही कितना है?